Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि के अवसर पर शुक्रवार को उनकी समाधि सदैव अटल (Sadaiv Atal) पर पुष्पांजलि कार्यक्रम एवं प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi), लोकसभा स्पीकर ओम बिरला (Om Birla), रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने BJP के दिग्गज नेता रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समाधि स्थल ‘सदैव अटल’ पर आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम एवं प्रार्थना सभा में शामिल होकर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
इन नेताओं ने भी दी श्रद्धांजलि
अटल बिहारी वाजपेयी की दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य और दामाद रंजन भट्टाचार्य ने भी ‘सदैव अटल’ पर पहुंचकर अटल बिहारी वाजपेयी को नमन किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। BJP राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा,पीयूष गोयल, मनोहर लाल खट्टर, गिरिराज सिंह, जीतन राम मांझी, अनुप्रिया पटेल एवं जयंत चौधरी,संजय झा, विनोद तावड़े, दुष्यंत गौतम, राधा मोहन दास अग्रवाल और अरुण सिंह समेत भाजपा और एनडीए गठबंधन में शामिल दलों के कई नेताओं ने भी अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की।
पत्थरों में भी जान फूंक सकती हैं ये कविताएं
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जितने अच्छे राजनेता और वक्ता थे, उससे कहीं बेहतरीन कवि भी थे। उनकी कुछ कविताएं जो ‘जिंदगी में हार नहीं मानने’ की सलाह देती हैं-
क़दम मिलाकर चलना होगा।
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
दो अनुभूतियां
पहली अनुभूति:
गीत नहीं गाता हूँ
बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
पीठ मे छुरी सा चांद
राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
दूसरी अनुभूति:
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ।