Sheikh Hasina Asylum: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अब दो दिनों से भारत में हैं और पश्चिमी देशों में उनको शरण देने को लेकर काफी हिचकिचाहट है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन या जर्मनी जैसे देश, जो पाकिस्तान या बांग्लादेश के ही भगोड़े नेताओं को शरण देते रहे हैं, वो अभी तक शेख हसीना को शरण देने के लिए तैयार नहीं हैं।
ब्रिटेन ने शेख हसीना को शरण देने से पहले नियम गिना दिए हैं, कि शरण लेने के लिए उन्हें शारीरिक तौर पर मौजूद रहना होगा। हालांकि, शेख हसीना के बेटे साजीब वाजेद ने शेख हसीना के किसी और देश से शरण मांगने की बात से ही इनकार कर दिया है।
साजीब वाजेद ने कहा है, कि शेख हसीना ने अभी तक किसी भी देश से शरण नहीं मांगी है और उन्होंने ये भी कहा, कि ‘हम भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी सहयोगी रहे हैं।’
यानि, साजीब वाजेद मोदी सरकार की तरफ फिलहाल उम्मीदों की नजर से देख रहे हैं। हालांकि, विदेश मामलों के जानकारों का कहना है, कि शेख हसीना सालों से सत्ता में रही हैं और उनके पास अथाह तजुर्बा है, इसलिए वो भारत से समर्थन मांगकर शायद मोदी सरकार को किसी मुश्किल परिस्थिति में नहीं डालना चाहेंगी।
शेख हसीना को लेकर भारत की दुविधा क्या?
विदेश मामलों के जानकार प्रोफेसर राम श्रीवास्तव से हमसे इस मुद्दे पर विस्तार से बात की।
उन्होंने कहा, कि “शेख हसीना को शरण देना डिप्लोमेटिक तौर पर भारत के लिए मुश्किल हो सकता है”, लिहाजा वो ‘अज्ञातवास’ का सुझाव दे रहे हैं। उनका कहना है, कि “शेख हसीना के पिता शेख मुजीब उर रहमान को भी भारत ने शरण दिया था और शेख हसीना को लेकर डिप्लोमेटिक दिक्कतों की स्थिति में उन्हें अज्ञातवास दे देना चाहिए।” उनका सुझाव है, कि “भारत आधिकारिक तौर पर स्वीकार ही ना करे, कि शेख हसीना यहां हैं।” उनके मुताबिक, अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण मौजूद हैं।
वहीं, शेख हसीना को पश्चिमी देश समर्थन क्यों नहीं दे रहे हैं, इस सवाल पर प्रोफेसर राम श्रीवास्तव, मुस्लिम चरमपंथियों के निशाने पर रहे सलमान रूश्दी का उदाहरण देते हैं।
प्रोफेसर श्रीवास्तव का कहना है, कि “शेख हसीना तालिबान समेत कई कट्टरपंथी समूहों के निशाने पर रही हैं। दूसरी तरफ, यूके में पिछले दिनों तीन बच्चियों की हत्या के बाद हिंसा फैली हुई है।”
उन्होंने कहा, कि “यूके में जिन बच्चियों की हत्या की गई, वो योगा क्लास में थी और हत्यारे को उन बच्चियों से नहीं, बल्कि योगा से दुश्मनी थी और ये बताता है, कि यूके में चरमपंथ किस हद तक फैल गया है और उसी के खिलाफ प्रदर्शन किए जा रहे हैं। ऐसे में अगर शेख हसीना को शरण दिया जाता है, तो फिर शेख हसीना की जिंदगी खतरें में आ जाएगी और यूके सरकार को भी उन्हें सलमान रूश्दी की तरह ही सुरक्षा देनी होगी और शायद यूके ऐसा नहीं करना चाहता है।”
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने हमसे कहा, कि “शेख हसीना को पश्चिमी देश एक बम की तरह देख रहे हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों में भारी संख्या में सीरियाई, लेबनानी और अन्य देशों के मुस्लिम शरणार्थी हैं, जिनमें से काफी मजहबी उन्माद में पागलपन की हद तक पहुंच चुके हैं, ऐसे में शेख हसीना को शरण देने पर वहां भी हिंसा भड़क सकती है और इसलिए पश्चिमी देश इससे बचना चाह रहे होंगे।”
भारत में ‘अज्ञातवास’ में रह चुकी हैं शेख हसीना
जब अगस्त 1975 में शेख हसीना के पूरे परिवार को ढाका में मार दिया गया था, उस वक्त शेख हसीना अपनी बहन शेख रेहाना के साथ ब्रसेल्स में बांग्लादेश के राजदूत सनाउल हक के यहां ठहरे हुए थे, लेकिन बांग्लादेश में सैन्य शासन लगने की खबर मिलते ही बांग्लादेशी राजदूत ने शेख हसीना से दूरी बना ली।
जिसके बाद शेख हसीना और उनकी बहन को कोई और देश शरण देने के लिए तैयार नहीं हो रहा था, और फिर थक-हारकर इंदिरा गांधी से संपर्क किया गया। उस वक्त भारत में आपातकाल लगा था, फिर भी इंदिरा गांधी ने दोनों बहनों को फौरन दिल्ली आने के लिए कहा।
शेख हसीना अपनी बहन के साथ दिल्ली आ गईं और फिर 10 दिनों के बाद इंदिरा गांधी से उनकी मुलाकात हुई थी। शेख हसीना को उस दौरान इंडिया गेट गेट के पास पंडारा पार्क के सी ब्लाक के एक फ्लैट में रखा गया था। भारत सरकार की तरफ से उन्हें दो खुफिया अधिकारी सुरक्षा में मुहैया करवाए गये थे और उन्हें एक तरह से अज्ञातवास में रखा गया था। दोनों बहनों को सख्त हिदायत दी गई थी, कि वो फ्लैट से बाहर ना निकलें। हालांकि, बाद में शेख हसीना के बच्चे तत्कालीन मंत्र प्रणब मुखर्जी के घर जाने लगे थे और उनके बच्चों के साथ खेलने लगे थे।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, शेख हसीना के रहने का खर्च भारत सरकार वहन करती थी। हालांकि, जब इंदिरा गांधी की सरकार गिर गई, तो मोरारजी देसाई की सरकार ने उनपर भारत छोड़ने का परोक्ष दबाव बनाया और उनके खर्चे भी रोक दिए, मगर बाद में इंदिरा गांधी के फिर से सत्ता में लौटने के बाद उनकी परेशानियां एकबार फिर खत्म हो गईं।
17 मई 1981 को शेख हसीना एक बार फिर से बांग्लादेश लौट गईं, जहां लाखों लोगों ने उनका स्वागत किया था।
यानि, प्रोफेसर श्रीवास्तव का ‘अज्ञातवास’ वाला आइडिया भी एक विकल्प हो सकता है।
लेकिन, भारत के सामने एक बड़ी दुविधा ये है, कि भारत शेख हसीना और बांग्लादेश में से किसे चुने?
ऐसा इसलिए क्योंकि अगर भारत शेख हसीना के साथ जाने का विकल्प चुनता है, तो बांग्लादेश में बनने वाली नई सरकार के साथ संबंध खराब होने का खतरा रहेगा। क्योंकि आज के समय में ‘अज्ञातवास’ में किसी को रखना काफी मुश्किल है, क्योंकि सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी के जमान में किसी को छिपाकर रखना असंभव जैसा लगता है।
वहीं, दूसरी तरफ अगर भारत शेख हसीना को देश से जाने के लिए कहता है, तो निश्चित तौर पर भारत के सहयोगी देशों में यही संदेश जाएगा, कि साथ देने वालों के साथ भारत खड़ा नहीं रहता है, जो भारत के प्रति सहयोगियों के विश्वास को कमजोर करेगा और भारत ऐसा संदेश जाते हुए नहीं देखना चाहेगा।
ऐसी स्थिति में एक्सपर्ट ये भी राय देते हैं, कि भारत किसी अरब देश में शेख हसीना के रहने की व्यवस्था कर दे। यूएई, सऊदी अरब और कतर जैसे देशों के साथ मोदी सरकार के काफी मजबूत संबंध हैं और पर्दे के पीछे भारत, शेख हसीना के लिए इन देशों में सुरक्षित आवास की व्यवस्था कर सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अगर शेख हसीना अरब देश जाती हैं, तो फिर बांग्लादेश में बनने वाली किसी भी सरकार की ये जुर्रत नहीं होगी, कि वो शेख हसीना को लेकर अरब देशों से सवाल पूछे। लिहाजा, भारत के लिए ये एक सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है।
वहीं, शेख हसीना का भारत में रहना अभी से ही मोदी सरकार के लिए परेशानियां बढ़ाना शुरू कर चुका है और अभी से बांग्लादेश में मांग होने लगी है, कि भारत सरकार शेख हसीना को गिरफ्तार करे और उन्हें वापस करें।
ऐसी स्थिति में अगर शेख हसीना को भारत में शरण दिया जाता है, तो देश में बनने वाली नई सरकार, या फिर अंतरिम सरकार के गठन के बाद भारत के लिए डिप्लोमेटिक परेशानियां पैदा हो सकती हैं।
शेख हसीना के बेटे साजीब वाजेद ने आजतक को दिए गये एक इंटरव्यू में कहा है, कि उनकी मां अपने रिश्तेदारों से मिलने अलग अलग देशों में जा सकती हैं। लेकिन, ऐसी स्थिति में वो एक सामान्य नागरिक की तरह ही कोई देश जा सकती हैं, जो उनकी सुरक्षा के लिए खतरा होगा।
फिलहाल मोदी सरकार ने शेख हसीना के भारत में रहने की मियाद बढ़ाने का फैसला किया है, लेकिन एक्सपर्ट का मानना है, कि ये फैसला भारत के लिए मुसीबत भरा हो सकता है। लिहाजा, भारत को सतर्कता के साथ कदम बढ़ाने की जरूरत होगी।