ब्रिटेन के पहले हिंदू प्रधानमंत्री और सारी दुनिया के भारतवंशियों के प्रिय ऋषि सुनक अपनी कंजरवेटिव पार्टी को ब्रिटेन की संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) के लिए हुए चुनाव में जीत दिलवाने में नाकाम रहे.
हालांकि वे अपनी सीट जीतने में सफल रहे. ऋषि सुनक ने उस परंपरा को ही आगे बढ़ाया था जिसका 1961 में श्रीगणेश सुदूर कैरीबियाई टापू देश गयाना में छेदी जगन ने किया था.
वे तब गयाना के प्रधानमंत्री बन गए थे. उनके बाद मॉरीशस में शिवसागर रामगुलाम से लेकर अनिरुद्ध जगन्नाथ, त्रिनिदाद और टोबैगो में वासुदेव पांडे, सूरीनाम में चंद्रिका प्रसाद संतोखी, अमेरिका में कमला हैरिस वगैरह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनते रहे.
ये सभी उन मेहनतकशों की संतानें रही हैं, जिन्हें गोरे दुनियाभर में लेकर गए थे ताकि वे वहां खेती करें. सुनक के पुरखे पंजाब से करीब 80 साल पहले कीनिया चले गए थे और वहां से वे ब्रिटेन जाकर बसे. बेशक, आगे भी छेदी जगन और सुनक की तरह भारतवंशी भारत के बाहर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनते रहेंगे.
बहरहाल, कीर स्टार्मर ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं.
क्योंकि उनकी लेबर पार्टी को चुनाव में भारी जीत मिली है. प्रधानमंत्री सुनक ने उत्तरी इंग्लैंड में रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट पर 23,059 वोट के अंतर के साथ दोबारा जीत हासिल की. ब्रिटेन की निवर्तमान संसद में भारतीय मूल के 15 सांसद थे, जबकि ब्रिटिश मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस बार भारतीय मूल के पिछली बार के मुकाबले अधिक सांसद जीते हैं. इसमें लेबर पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी, दोनों दलों के सांसदों का समावेश है. जीतने वालों में ऋषि सुनक के अलावा शिवानी राजा, प्रीति पटेल और नवेंदु मिश्रा जैसे नाम शामिल हैं.
संसद का चुनाव कनाडा का हो, ब्रिटेन का हो या फिर किसी अन्य लोकतांत्रिक देश का, भारतीय उसमें अपना असर दिखाने से पीछे नहीं रहते. उन्हें सिर्फ वोटर बने रहना नामंजूर है. वे चुनाव लड़ते हैं. करीब दो दर्जन देशों में भारतवंशी संसद तक पहुंच चुके हैं. हिंदुस्तानी सात समंदर पार मात्र कमाने-खाने के लिए ही नहीं जाते. वहां पर जाकर हिंदुस्तानी राजनीति में भी सक्रिय भागीदारी करते हैं. अगर यह बात न होती तो लगभग 22 देशों की पार्लियामेंट में 182 भारतवंशी सांसद न होते
दक्षिण अफ्रीका को ही लें. वहां पिछली मई में संसद के लिए हुए चुनाव में भी भारतीय मूल के बहुत से उम्मीदवार विभिन्न राजनीतिक दलों से अपना भाग्य आजमा रहे थे. उन्होंने संसद और प्रांतीय असेंबलियों में भी जीत दर्ज की. अब कुछ महीनों के बाद अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव है. उम्मीद है कि वहां एक बार फिर से भारतवंशी कमला हैरिस उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाएंगी.