आपको ये जानकार आश्चर्य और हैरानी होगी कि गांधी परिवार जो कांग्रेस पार्टी को अपना पर्याय मानती है, उसने इस बार हो रहे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट नहीं दिया. अब बताता हूं क्यों.
गांधी-नेहरू परिवार की सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी, बेटी प्रियंका गांधी, दामाद रोवर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी का बेटा, ये सभी नई दिल्ली सीट के वोटर हैं. इत्तेफाक कहिये या गठबंधन की मजबूरी कि इस बार कांग्रेस को नई दिल्ली सीट गठबंधन में नहीं मिल पाई और यहां से बीजेपी के उम्मीदवार के सामने कांग्रेस नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सोमनाथ भारती चुनाव लड़ रहे थे. हालांकि ये बताना ठीक नहीं होगा कि गांधी-नेहरू परिवार ने किनको वोट डाला होगा. लेकिन ये तय है कि ये नेता कांग्रेस को वोट देने से महरूम रह गए. इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और एनडीए के खिलाफ कांग्रेस ने ‘इंडिया गठबंधन’ बनाया है, और इसी गठबंधन के चलते दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं.
एक वक्त था जब दिल्ली में कांग्रेस पार्टी का दबदबा था, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी की बी-टीम बनकर सात सीटों में 3 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही हैं, जिसकी वजह से नई दिल्ली सीट ‘आप’ के खाते में चली गई. यहां ये बताना भी लाजिमी है कि नई दिल्ली सीट, जिसपर पुरे देश की नजरें टिकी होती हैं, वहां से कांग्रेस का कितना गहरा रिश्ता रहा हैं.
नई दिल्ली देश की सबसे प्रतिष्ठित सीट
आजादी के बाद 1951 से ही नई दिल्ली सीट अस्तित्व में आया. 1951 के बाद से लेकर अब तक हुए लोकसभा चुनाव में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ है कि कांग्रेस इस सीट से चुनाव ना लड़ी हो.
1952 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव से लेकर अब तक कुल 19 चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से सबसे ज्यादा 10 बार बीजेपी ने जीत हासिल की है. नई दिल्ली लोकसभा सीट पर हुए अब तक के चुनावों में 4 बार महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. जिनमें पहली महिला सांसद सुचेता कृपलानी थीं. उन्होंने लगातार पहली और दूसरी लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की. वहीं, 16वीं और 17वीं लोकसभा में बीजेपी की तरफ से मीनाक्षी लेखी दो बार सांसद चुनी गईं.
ये दिग्गज जीते चुनाव
1952 के लोकसभा चुनाव में किसान मजदूर प्रजा पार्टी की तरफ से सुचेता कृपलानी नई दिल्ली लोकसभा सीट से जीत कर यहां की पहली सांसद बनी थीं. दूसरे लोकसभा चुनाव 1957 में वे कांग्रेस की टिकट पर इसी सीट से सांसद चुनी गईं.
1977 के चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने जीत हासिल की. 1980 में चुनाव में भी वाजपेयी ही विजयी हुए.
10वीं लोकसभा में 1991-96 के बीच इस सीट पर दो बार चुनाव हुए. बीजेपी की तरफ से दोबारा लाल कृष्ण आडवाणी को चुनावी मैदान में उतारा गया था. अपना पहला चुनाव लड़ रहे राजेश खन्ना ने आडवाणी को कड़ी टक्कर दी थी और महज 1589 वोटों से हारे थे. चूंकि, उस समय आडवाणी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था इसलिए उन्होंने नई दिल्ली लोकसभा सीट को छोड़ दिया था. जिस पर 1992 में उप चुनाव हुए और राजेश खन्ना ने जीत हासिल की. उसके बाद 11वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा के लिए 1996 से 2004 बीच लाल कृष्ण आडवाणी लगातार तीन बार बीजेपी की तरफ से सांसद बने. आडवाणी के बाद 1996, 1998 और 1999 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर जगमोहन ने भी लगातार तीन बार जीत हासिल की.
कांग्रेस नेता अजय माकन ने 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली लोकसभा सीट से जीत का स्वाद चखा था. 2004 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेता जगमोहन को हराया था. माकन के बाद 2014 और 2019 के आम चुनाव बीजेपी की मीनाक्षी लेखी ने दोनों बार कांग्रेस के अजय माकन को हराकर जीत हासिल की.
इस बार के चुनाव में यहां से बीजेपी ने मीनाक्षी लेखी का टिकट काटकर वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को मैदान में खड़ा किया. उनके सामने आम आदमी पार्टी के सोमनाथ भारती ने कांग्रेस के गठबंधन पर चुनाव लड़ा है.