Haryana Lok Sabha Election: हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर 25 मई को मतदान होना है। यह चुनाव राज्य में इस बार भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि वह पिछले दोनों चुनावों से वहां शानदार प्रदर्शन करती आ रही है और राज्य में भी वह लगभग एक दशक से सत्ता में है।
यह चुनाव ऐसे समय में हो रहा है, जब राज्य की बीजेपी सरकार को हाल में झटके पर झटके लगे हैं। पहले पांच साल पुराना बीजेपी-जेजेपी गठबंधन टूटा और फिर नायब सिंह सैनी सरकार से तीन निर्दलीय विधायकों ने भी समर्थन वापस ले लिया।
हरियाणा में इस बार बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती हालांकि, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के तीन विधायकों के सपोर्ट से सरकार तो बच गई है, लेकिन लोकसभा चुनावों की राह इस बार उतनी आसान नहीं दिख रही है। 2019 में भाजपा ने हरियाणा में सभी 10 सीटें जीती थीं और 2014 में उसके खाते में 7 सीटें आई थीं।
2019 में बीजेपी को हरियाणा में मिली थी बहुत बड़ी जीत पिछली बार पुलवामा में हुए आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के बालाकोट में किए गए एयर स्ट्राइक के बाद राष्ट्रवाद राज्य के लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था। तब राज्य में मोदी फैक्टर बहुत ही ज्यादा हावी था। राज्य में भाजपा की जीत इतनी बड़ी थी कि हर सीट पर इसके प्रत्याशियों की जीत का मार्जिन 3,50,000 लाख वोट से ज्यादा का था।
हरियाणा में इस बार भाजपा के सामने क्या है चुनौती? बीते पांच वर्षों में राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों और समीकरण में काफी बदल आ चुका है। खासकर जाटों की गोलबंदी, किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना को लेकर युवाओं की चिंताएं भाजपा के लिए चुनौती बनकर खड़ी हुई हैं। जाटों के मामले में भाजपा की मुश्किल ये है कि राज्य में आज भी पूर्व सीएम और कांग्रेस के दिग्गज भूपेंद्र हुड्डा इनके सबसे बड़े नेता हैं। हरियाणा में जाटों की जनसंख्या करीब 24% है। यह मूल रूप से कृषि पर निर्भर लोग हैं तो सेना में भर्ती भी इनके युवाओं की प्राथमिकताओं में शामिल है। 2019 में भाजपा को बालाकोट की वजह से राज्य में जाटों का खुलकर समर्थन मिला था। लेकिन, इस बार उनके सामने अन्य मुद्दों के अलावा महिला पहलवानों का प्रदर्शन भी बड़ा मुद्दा है। इसीलिए कांग्रेस को इस बार जाटों का समर्थन मिलने की पूरी उम्मीद है।
हरियाणा में इस बार किसके सहारे टिकी होगी बीजेपी की उम्मीद? हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हरियाणा में जाटों का भाजपा के खिलाफ गोलबंदी की आशंका का परिणाम ये भी हो सकता है कि उससे अलग अन्य जातियों की गोलबंदी उसके पक्ष में होने की संभावना बढ़ेगी। भाजपा को लगता है कि ओबीसी, ब्राह्मण, बनिया,गुर्जर,दलित और पंजाबी वोटरों के दम पर वह इस बार भी राज्य में कमोवेश अपना पिछला प्रदर्शन कायम रख पाएगी। बीजेपी की ओर से ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया जाना भी उसी रणनीति का हिस्सा है। मनोहर लाल खट्टर पंजाबी हैं और नायब को आगे बढ़ाने में उनकी भी भूमिका रही है।
बीजेपी ने टिकट बंटवारे में समाजिक समीकरण का रखा ध्यान
हरियाणा में बीजेपी ने इस बार अपने 6 मौजूदा सांसदों को टिकट नहीं दिया है। पार्टी ने दो-दो टिकट जाट, ब्राह्मण और दलित समाज के उम्मीदवारों को दिए हैं। जबकि, एक-एक प्रत्याशी यादव, गुर्जर, पंजाबी और बनिया समाज से बनाए हैं।
कांग्रेस ने भी टिकट बंटवारे में सामाजिक समीकरण पर दिया जोर कांग्रेस इस बार हरियाणा की 9 सीटों पर लड़ रही है और एक सीट पर इंडिया ब्लॉक में उसकी सहयोगी आम आदमी पार्टी मैदान में है। कांग्रेस ने 8 सीटों पर उम्मीदवार बदले हैं। पिछली बार पार्टी ने 3 जाट उम्मीदवारों पर भरोसा किया था, लेकिन इस बार सिर्फ 2 जाटों को ही टिकट दिया है। कांग्रेस ने 2 दलित और 2 ही पंजाबियों को टिकट दिया है और एक-एक टिकट यादव, गुर्जर और ब्राह्मण प्रत्याशियों को दिए हैं।