S Jaishankar Interview: भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है, कि भारत अब ना सिर्फ स्पष्ट, बल्कि आत्मविश्वास से भरा रुख अपना रहा है, चाहे वह रूस-यूक्रेन संघर्ष हो, गाजा पर आक्रमण हो, या दक्षिण चीन सागर का मामला हो।
हिंदुस्तान टाइम्स को दिए गये इंटरव्यू में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, कि विदेश नीति के मामलों में मोदी सरकार का “अनुभवी, शांत, व्यावहारिक, जमीनी.. लेकिन साहसी” नेतृत्व अब मतदाताओं के लिए उनकी कैम्पेनिंग का हिस्सा है।
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, कि लोगों के लिए उनके पास एक सरल संदेश है, कि “नरेंद्र मोदी के हाथों को मजबूत करें, क्योंकि वह वास्तव में वह व्यक्ति हैं, जो आपको तूफान से बचाएंगे।” क्या चुनाव पर हो रहा है विदेश नीति का असर? इस सवाल पर, कि क्या लोकसभा चुनाव को विदेश नीति प्रभावित करती है, भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, कि “मुझे लगता है कि दो चीजें बदल गई हैं.. एक, विदेश नीति क्या है और घरेलू नीति क्या है..? के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। इसलिए, यदि आप ऐसा कुछ देखते हैं, कि (भारत) अपने उपभोक्ता के लिए रूसी तेल खरीद रहा है, तो यह घरेलू नीति है, क्योंकि यह वही है जो आप पेट्रोल पंप पर भुगतान करते हैं।”
भारतीय विदेश मंत्री ने आगे कहा, कि “मुझे यह बहुत दिलचस्प लगता है, क्योंकि जब मैं चुनावों के दौरान लगभग नौ या 10 राज्यों में गया हूं, तो मुझे लगभग हमेशा विदेश नीति पर सवालों का एक सेट मिलता है। इसलिए, मुझे लगता है कि यह कहीं न कहीं लोगों की चेतना में घर कर गया है। और वो क्या बाते हैं, कि एक- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को कहां ले गए हैं, इस पर गर्व की भावना है। दो- अब लोग समझने वलगे हैं, कि अगर बाहर कोई खतरा है, वो महामारी हो सकती है, आतंकवाद हो सकता है, बाहर नहीं रहेंगे, वो घर आ जायेंगे। तो यह बहुत दिलचस्प है। यदि आप भाजपा के घोषणापत्र को देखें, तो मुझे लगता है कि हमने विदेश नीति को पहले से कहीं अधिक स्थान दिया है।”
विदेशों में होने वाले संकटों से कैसे निपटती है सरकार?
इस सवाल पर, कि हम एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। कहीं यूक्रेन संकट है, कहीं गाजा है, कहीं आतंकी हमले हो रहे हैं, कहीं गनबोट डिप्लोमेसी है। इस अशांति को प्रबंधित करने का तरीका क्या है? भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, कि “आपने भी कहा, कि हम एक संकट से दूसरे संकट की तरफ बढ़ रहे हैं, तो हकीतय ये है, कि हम एक ही समय में कई संकटों में हैं। और इसकी शुरुआत एक से हुई, फिर दो से, और फिर तीन से। मेरा मतलब है, देखिए, कोविड का प्रभाव अभी भी बना हुआ है। यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे वर्ष में है। इजराइल-गाजा में तनाव बढ़ने की संभावना है, इजराइल-ईरान अभी भी सुलग रहे हैं.. अरब सागर में होने वाले हमले ट्रेड रूट को प्रभावित कर रहे हैं, वहां भारतीय जहाजों के लिए बहुत बड़ा खतरा है। चीन एलएसी पर हम पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान वास्तव में लगातार गहराते संकट में है। अफगानिस्तान बहुत तनावपूर्ण होता जा रहा है, दक्षिण चीन सागर समुद्री विवाद, फिर अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा, और फिर रूस तक फैला हुआ संघर्ष ..। अन्य क्षेत्रों के अपने आतंकवाद, शासन संबंधी मुद्दे हैं। यदि कोई निष्पक्ष रूप से दुनिया की स्थिति का आकलन करता है, तो यह वास्तव में बहुत अशांत, बहुत अस्थिर है और इसके वास्तव में और अधिक जटिल होने की सारी संभावनाएं हैं।” “तो फिर हम इसका सामना कैसे कर सकते हैं? तो मुझे लगता है कि सबसे महत्वपूर्ण चीज जो हम कर सकते हैं, वह वास्तव में एक अनुभवी, शांत, व्यावहारिक, जमीनी लेकिन साहसी नेतृत्व है, जो एक्शन ले सकता है, क्योंकि हमें कॉल करते रहना होगा। आप जानते हैं, हमें यूक्रेन में अपने छात्रों के बारे में वैसे ही फैसला करना होगा, जैसे हमने किया था। हमें फोन करना होगा, कि क्या हम रूसी तेल खरीदते हैं। हमें निर्णय लेना होगा, कि क्या हम क्वाड पर चीनी दबाव के आगे झुकेंगे या चीनी दबाव के सामने खड़े रहेंगे, क्योंकि हम कई साल पहले 2007 में झुके थे। इसलिए, मैं आज सोचता हूं, मेरा संदेश होता है, जब मैं बाहर जाता हूं, और लोग मुझसे पूछते हैं… तो मेरा उनके लिए ईमानदार जवाब ये होता है, कि नरेंद्र मोदी के हाथों को मजबूत करना है, क्योंकि वह वास्तव में वह व्यक्ति हैं जो तूफानी दौर में आपका साथ देंगे, क्योंकि, जब हम इन अशांत पानी में नेविगेट करते हैं तो आपको टिलर पर बहुत दृढ़, स्थिर, अनुभवी हाथों की आवश्यकता होती है।”