भारत सहित पूरी दुनिया में बीमारियों का बोझ तेजी से बढ़ा है। स्थिति यह है कि पिछले तीन दशक में पहली बार दुनिया भर में मरीजों की संख्या 288 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई है। साल 2010 से 2021 के बीच भारत में सबसे बड़ी बीमारी कोरोना संक्रमण रही, जिसने देश की 50 फीसदी से ज्यादा आबादी को अपनी चपेट में लिया है।
इसमें ऐसे मरीज भी शामिल हैं जिन्हें लक्षण न होने या किसी अन्य कारण के चलते अपनी जांच नहीं कराई जिसकी वजह से वह सरकारी आंकड़ों से दूर रहने में कामयाब रहे।
यह जानकारी दुनिया के चर्चित मेडिकल जर्नल द लैंसेट की ओर से जारी वैश्विक रोग बोझ (जीबीडी) 2021 रिपोर्ट में सामने आई है, जिसमें 204 देशों में साल 1990 से 2021 के बीच कुल 371 बीमारियों का आकलन किया गया। इसमें यह बताया कि साल 2010 से 2021 के बीच भारत में शीर्ष बीमारियों का स्वरूप बदला है। 2010 तक भारत में सबसे ज्यादा नवजात संबंधी विकार के मामले पाए जाते थे जो कोरोना महामारी के पहले दो साल में तीसरे पायदान पर आ गए। 2020 और 2021 में सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले भारत में थे। कोरोना के बाद भारत में दूसरी सबसे आम बीमारी हृदय रोग बना है जिसमें हार्ट अटैक के मामले भी शामिल है।
भारत में स्ट्रोक, श्वसन व पेट के मरीज ज्यादा
रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा समय में कोरोना संक्रमण, हृदय रोग और नवजात संबंधी विकार के अलावा भारत में सीओपीडी, स्ट्रोक, महामारी संबंधित अन्य बीमारी, श्वसन संबंधी संक्रमण, पेट से जुड़े संक्रमण, टीबी और मधुमेह शीर्ष बीमारियां हैं जिनके सबसे ज्यादा मरीज पाए जा रहे हैं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के वरिष्ठ प्रो. साइमन आई ने रिपोर्ट में कहा है कि भारत सहित पूरी दुनिया ने कोरोना महामारी का सामना किया है और इसकी वजह से बीमारियों के स्वरूप में बड़ा अंतर आया है।
47% कम हुए एचआईवी-डायरिया के मामले
द लैंसेट की नई रिपोर्ट में पता चला है कि एचआईवी/एड्स और डायरिया जैसे मामलों में करीब 47 फीसदी तक की गिरावट आई है। इसी तरह संचारी रोग, मातृ और बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी काफी बेहतर लाभ भी मिले हैं।
बच्चों में संक्रमण, युवाओं में हृदय रोग बहुत
भारत के अस्पतालों में शून्य से 10 वर्ष तक की आयु के बच्चों में संक्रमण के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए जा रहे हैं। वहीं वयस्क आबादी में हृदय रोग के मामले सबसे अधिक मिल रहे हैं। भारत में सालाना होने वाली मौतों में हार्ट अटैक का योगदान भी काफी बढ़ा है। उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग, मलेरिया सहित अन्य संक्रामक रोग, मातृ एवं नवजात संबंधी विकार और पोषक तत्वों की कमी भारतीय बच्चों के लिए सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है।