Banglades News: बांग्लादेश में अगले साल जनवरी में होने वाले संसदीय चुनाव से पहले तुफान मचा हुआ है और ऐसा लग रहा है, कि बांग्लादेश के अंदरूनी मामले में विदेशी शक्तियां जमकर अपने दांव आजमा रही हैं। चुनाव से पहले बांग्लादेश में विपक्ष लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहा है और मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान किया है।
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) पिछले कुछ महीनों में कई हड़तालें और भारी विरोध प्रदर्शन कर रही है। इसके अलावा उसने 28 और 29 नवंबर को राष्ट्रीय नाकाबंदी और हड़ताल का आह्वान किया है। विपक्षी पार्टी की प्राथमिक मांग ये है, कि सत्तारूढ़ अवामी लीग की अध्यक्ष और देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पद से इस्तीफा दें और चुनावी धांधली को रोकने के लिए एक अंतरिम सरकार का गठन करे, जैसा कि पाकिस्तान में किया जाता है। विपक्षी पार्टियों का कहना है, कि शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते बांग्लादेश में निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते हैं।
रूस बनाम अमेरिका का मामला क्या है? लेकिन, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के हड़ताल के ऐलान के बाद विवाद उस वक्त शुरू हो गया, जब रूस ने दावा कर दिया, कि संयुक्त राज्य अमेरिका बांग्लादेश में चुनाव से पहले अशांति फैला रहा है।
पिछले हफ्ते रूस ने आरोप लगाया, कि संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी “इंडो-पैसिफिक रणनीति” के लिए समर्थन सुनिश्चित करने के लिए बांग्लादेश की राजनीति में हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रहा है। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने कहा, कि “हमने अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा बांग्लादेश में आंतरिक राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने के प्रयासों के बारे में बार-बार बात की है, जाहिरा तौर पर वहां आगामी संसदीय चुनावों में ‘पारदर्शिता और समावेशिता’ सुनिश्चित करने के बैनर तले ऐसा किया जा रहा है।” उन्होंने कहा, कि “बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास और स्थानीय विपक्ष के एक बड़े नेता के बीच अक्टूबर के अंत में एक बैठक के बारे में जानकारी सामने आई है। कथित तौर पर, उन्होंने बैठक के दौरान देश में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन आयोजित करने की योजना पर चर्चा की।” रूसी प्रवक्ता ने आगे आरोप लगाया, कि “अमेरिकी राजदूत ने विपक्षी नेता से विरोध प्रदर्शन की जानकारियां मांगी और विरोध प्रदर्शन के दौरान की गई लाठी चार्ज को लेकर भी सूचनाएं हासिल की। इसके अलावा, अमेरिका ने प्रदर्शन के दौरान और जानकारियां विपक्ष को देने का आश्वासन दिया। कथित तौर पर ये आश्वासन संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों के दूतावासों की ओर से दिए गए थे।” रूस के ये आरोप बेहद सनसनीखेज हैं, क्योंकि अमेरिका की ये कोशिश, बांग्लादेश की आंतरिक मामलों में डायरेक्ट दखलअंदाजी है। रूस के आरोप पर अमेरिका की प्रतिक्रिया रूस के सनसनीखेज आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका ने कहा, कि वो बांग्लादेश में किसी भी पार्टी को कोई समर्थन या पक्षपात नहीं कर रहा है। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, कि वाशिंगटन में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा, “हम ज़खारोवा (रूसी प्रवक्ता) द्वारा अमेरिकी विदेश नीति और राजदूत हाउस की बैठकों को जानबूझकर गलत तरीके से पेश करने से अवगत हैं।” उन्होंने आगे कहा, कि “शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के उस साझा लक्ष्य का समर्थन करने के लिए, अमेरिकी दूतावास के कर्मी सरकार, विपक्ष, नागरिक समाज और अन्य हितधारकों के साथ जुड़ते रहेंगे और उनसे बांग्लादेशियों के लाभ के लिए मिलकर काम करने का आग्रह करेंगे।” अमेरिकी अधिकारी ने आगे कहा, कि “संयुक्त राज्य अमेरिका, बांग्लादेश में किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करता है। न ही संयुक्त राज्य अमेरिका एक राजनीतिक दल को दूसरे से ज्यादा तरजीह देता है।”
रूस और अमेरिका की लड़ाई में भारत
दोनों देशों के बीच तीखी नोकझोंक इस मुद्दे पर बहस की श्रृंखला में सबसे लेटेस्ट है। इससे पहले सितंबर में, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बांग्लादेश की यात्रा के दौरान कहा था, कि “हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, कि अमेरिका और उसके सहयोगी वास्तव में तथाकथित इंडो-पैसिफिक रणनीति का उपयोग करके, क्षेत्र में अपने हितों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा था, कि “उनका (अमेरिका) लक्ष्य स्पष्ट रूप से चीन का मुकाबला करना और इस क्षेत्र में रूस को अलग-थलग करना, दोनों है।” आपको बता दें, कि बांग्लादेश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को लेकर भारत भी अमेरिका से दो-दो हाथ कर रहा है। भारत शेख हसीना की सरकार के साथ है, जबकि अमेरिका, स्वतंत्र चुनाव के नाम पर जमात-ए-इस्लामी का समर्थन कर रहा है, जिसके चुनाव लड़ने पर बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट प्रतिबंध लगा चुका है। जमात-ए-इस्लामी एक कट्टर इस्लामिक संगठन है, जिसने 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान का समर्थन किया था। ये पाकिस्तान का समर्थक है और हत्या के एक मामले में इसके पूर्व प्रमुख को फांसी तक दी जा चुकी है। बांग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट कई साल पहले ही जमात-ए-इस्लामी को खतरनाक करार देते हुए उसके चुनावी राजनीति में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा चुका है। वहीं, बांग्लादेश नेशनिल्स पार्टी, यानि बीएनपी को भी अमेरिका का समर्थन हासिल है।
जबकि, बीएनपी पाकिस्तान समर्थक है, लिहाजा अगर बीएनपी की सरकार बनती है, तो भारत को बांग्लादेश में भी मालदीव जैसी हार हासिल होगी, लिहाजा मोदी सरकार खुलकर शेख हसीना का समर्थन कर रही है। लिहाजा, रूस के आरोपों ने भारत को सावधान कर दिया है। कुल मिलाकार हालात 1971 जैसे बन गये हैं, जहां अमेरिका के खिलाफ भारत की मदद के लिए रूस आ गया था। यहां भी भारत और रूस एक खेमे में कहे जा सकते हैं, जबकि अमेरिका, भारत विरोधी ताकत का समर्थन कर रहा है।