India ICC Membership: क्रिकेट जगत में भारत की हैसियत आज एक सुपरपावर की है. भारत के पास सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है. भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया की सबसे मजबूत टीमों में से एक है जोकि अब क्रिकेट विश्वकप 2023 जीतने की दहलीज पर है.
देश में किसी त्योहार की तरह सेलिब्रेट किए जाने वाले इस खेल का अब तक का सफर बेहद रोचक और रोमांचक रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि 1947 में भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भारतीय क्रिकेट की आईसीसी मेंबरशिप जाने का खतरा मंडराने लगा था और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के एक फैसले से यह बरकरार रह सकी थी.
उस दौरान वैश्विक क्रिकेट निकाय आईसीसी को इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस के तौर पर जाना जाता था, जो उस समय ब्रिटिश राजशाही के संरक्षण में था. अब आईसीसी को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के तौर पर जाना जाता है.
राष्ट्रमंडल सदस्यता की रही भारतीय क्रिकेट में भूमिका
वैश्विक निकाय का सदस्य बने रहने के लिए राष्ट्रमंडल की सदस्यता ने भारत के लिए अहम भूमिका निभाई थी. दरअसल, 1947 में अंग्रेजी हुकूमत से भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी नई सरकार ने ब्रिटिश राजा को तब तक स्वीकार किया था जब तक कि यह गणतंत्र नहीं बन गया, यानी जब तक देश में संविधान को अपनाया नहीं गया.
वहीं, कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि भारत एक गणतंत्र बने और ब्रिटिश राजशाही के साथ सभी संबंध तोड़ दे. उस दौरान तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्लेमेंट एटली और विपक्षी नेता विंस्टन चर्चिल ने भारत को राष्ट्रमंडल का हिस्सा बनने की पेशकश की थी.
सरदार वल्लभभाई पटेल समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भारत के राष्ट्रमंडल का हिस्सा होने के विचार के विरोध में थे और उनका मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद ब्रिटिश ताज के साथ कोई भी राजनीतिक या संवैधानिक संबंध बनाए नहीं रखा जाना चाहिए.
भारत को राष्ट्रमंडल में रखने पर सहमत हुए थे नेहरू
अपनी किताब ‘नाइन वेव्स: द एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्टोरी ऑफ इंडियन क्रिकेट’ में ब्रिटिश-भारतीय पत्रकार मिहिर बोस लिखते हैं कि चर्चिल ने सुझाव दिया कि भले ही भारत एक गणतंत्र बन जाए लेकिन देश राष्ट्रमंडल के भीतर एक गणतंत्र बना रह सकता है और राजा को स्वीकार कर सकता है. ब्रिटिश किंग को भी यह विचार पसंद आया. नेहरू भारत को राष्ट्रमंडल में रखने पर सहमत हो गए.
इस तरह भारत बना आईसीसी का स्थायी सदस्य
महिर बोस ने किताब में लिखा है कि जब 19 जुलाई 1948 को लॉर्ड्स में इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस (आईसीसी) की बैठक हुई तो यह निर्णय लिया गया कि भारत आईसीसी का सदस्य बना रहेगा लेकिन यह केवल अस्थायी आधार पर मेंबर होगा. भारत की आईसीसी सदस्यता फिर दो साल बाद संशोधित की जाएगी. आईसीसी के नियम 5 में कहा गया है कि अगर कोई देश ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का सदस्य नहीं है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी.
जब जून 1950 में आईसीसी की अगली बैठक हुई तब तक भारत अपना संविधान अपना चुका था लेकिन देश सरकार पर ब्रिटिश राजशाही के किसी भी अधिकार के बिना राष्ट्रमंडल का सदस्य भी बना रहा. आखिर भारत की राष्ट्रमंडल सदस्यता को देखते हुए आईसीसी ने भारत को स्थायी सदस्य बना लिया.