कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने दिल्ली अध्यादेश पर कांग्रेस के स्टैंड को लेकर अपनी सहमति दिखाई. उन्होंने कहा कि राज्यपाल और उपराज्यपाल निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी कठपुतली नहीं बना सकते.
दिल्ली सरकार की शक्तियों को लेकर उपराज्यपाल और आप सरकार के बीच जारी गतिरोध के बीच केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश का आम आदमी पार्टी कड़ा विरोध कर रही है. दिल्ली अध्यादेश पर AAP को कांग्रेस का साथ भी मिला है. हालांकि, पंजाब कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ जाने के सख्त खिलाफ है. इसी बीच पंजाब कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने पार्टी के मत के खिलाफ जाकर दिल्ली अध्यादेश पर आम आदमी पार्टी का साथ दिया है.
दिल्ली अध्यादेश पर नवजोत सिंह सिद्धू का बयान
मीडिया से बातचीत के दौरान कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने दिल्ली अध्यादेश पर कांग्रेस के स्टैंड को लेकर अपनी सहमति दिखाई. उन्होंने कहा कि राज्यपाल और उपराज्यपाल निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी कठपुतली नहीं बना सकते. राज्यपाल और उपराज्यपाल से इस देश की लोकतांत्रिक ताकत को गुलाब नहीं बनाया जा सकता. LG किसी चुनी हुई सरकार को हिदायत नहीं दे सकता. उपराज्यपाल चुने हुए नुमाइंदों को गुलाम नहीं बना सकता और अपनी नॉमिनेटेड फोर्स नहीं थोप सकता. अगर ये सरकार रही तो राहुल गांधी के पीछे चलते हुए हर कोई कह रहा है कि ये देश नहीं रहेगा, इस देश का लोकतंत्र नहीं रहेगा.’
राघव चड्ढा ने अध्यादेश को राज्यसभा में पेश करना अनुचित बताया
इसके अलावा आप नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ को एक चिट्ठी लिखी है. इसमें राघव चड्ढा ने कहा कि ये अध्यादेश चुनी हुई सरकार से उसका संवैधानिक अधिकार छीनता है. यह नाजायज, अनुचित और अस्वीकार्य है.
राघव चड्ढा ने इस अध्यादेश के असंवैधानिक बताया है
इसके साथ ही आम आदमी पार्टी सांसद राघव चड्ढा ने इस अध्यादेश के असंवैधानिक होने को लेकर तीन कारण भी बताए. जिसमें उन्होंने पहला कारण बताया कि केंद्र का अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के के निर्णय के खिलाफ है. साथ ही दूसरा ये कि यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 239AA की धज्जियां उड़ाता है. उन्होंने तीसरा कारण बताया कि इस अध्यादेश को लेकर एक केस सुप्रीम कोर्ट में अभी विचाराधीन है. इस मसले को संविधान पीठ को विचार के लिए सौंप दिया गया है. आप सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसने 20 जुलाई 2023 के अपने आदेश के जरिए इस सवाल को संविधान पीठ को भेजा है.