रामायण के सुंदरकांड में वानर सेना सीता की खोज करते हुए संपात्ति नाम के एक गिद्ध के पास पहुंची। संपात्ति ने वानरों से कहा कि मैं यहां से लंका में देख सकता हूं कि वहां रावण ने सीता को बंदी बनाकर रखा है।
संपात्ति की बात सुनकर वानरों ने तय किया कि सौ योजन का समुद्र पार करके लंका जाना पड़ेगा और वहां सीता की खोज करनी होगी। वानर सेना में कई बलवान वानर थे। कुछ ने कहा कि हम 70-80 योजन समुद्र तक पहुंच सकते हैं, इसके आगे नहीं जा पाएंगे। अंगद ने भी अपनी योग्यता पर भरोसा नहीं जताया।
जामवंत ने कहा कि मैं अब बूढ़ा हो गया हूं। जब विष्णु जी ने वामन अवतार लिया था, तब मैं युवा था। उस समय मैंने वामन देव के विराट स्वरूप की 21 बार परिक्रमा कर ली थी। तब मैं इतना समर्थ था, लेकिन अब मैं बूढ़ा हूं, इस वजह से समुद्र लांघकर लंका नहीं पहुंच सकता।
एक-एक करके सभी ने लंका जाने से मना कर दिया। अंत में जामवंत ने हनुमान जी से कहा था कि तुम लंका जाओ। तुम ये काम कर सकते हो। जामवंत ने हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद दिलाईं और वे लंका जाने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद हनुमान जी लंका पहुंचे और सीता की खोज करके लौट आए। हनुमान जी के बताने के बाद श्रीराम वानर सेना के साथ लंका पहुंचे और रावण का वध करके सीता जी को आजाद कराया।
जामवंत की सीख
इस कहानी में जामवंत ने संदेश दिया है कि हमें कभी भी अपनी क्षमता से अधिक बड़ा काम हाथ में नहीं लेना चाहिए। अगर जिम्मेदारियां ज्यादा बड़ी होंगी तो पूरा काम बिगड़ सकता है। जामवंत ने इस काम के लिए वानर सेना में सबसे योग्य सदस्य हनुमान जी को प्रेरित किया।