वैज्ञानिकों ने दुनिया में ज्ञात सबसे प्राचीन ग्लेशियर के निशान खोजे हैं।
2.9 अरब वर्ष पुराने ग्लेशियर के ये साक्ष्य दक्षिण अफ्रीका में स्थित विश्व के सबसे विशाल सोने के भंडार के नीचे खोजे गए हैं। खोज से पता चलता है कि अतीत में महाद्वीपीय आइस कैप्स मौजूद थीं और ये क्षेत्र या तो ध्रुवों के करीब था; या फिर वह हिस्सा ‘स्नो अर्थ’ के दौरान अत्यधिक ठंडे मौसम की वजह से बर्फ के रूप में जम गया होगा। माना जाता है कि इस दौरान पृथ्वी बर्फ के गोले के रूप में थी।
दुनिया का सबसे पुराना ग्लेशियर मिला यह शोध जर्नल जियोकेमिकल पर्स्पेक्टिव्स लेटर्स में प्रकाशित हुआ है। जिसके मुताबिक प्राचीन चट्टानों में सापेक्षिक ऑक्सीजन आइसोटोप कंसंट्रेशन के साक्ष्य मिले हैं, जो 2.9 अरब वर्ष प्राचीन हैं। इसके साथ ही भौतिक साक्ष्य भी मिल हैं, जिससे ग्लेशियर की मौजूदगी जाहिर होती है।
विश्व के सबसे विशाल स्वर्ण भंडार का नीचे मौजूदगी
अमेरिका के ओरेगॉन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इलिया बाइंडमैन ने कहा है, ‘हमें दक्षिण अफ्रीका के स्वर्ण भंडार के नजदीक बहुत ही अच्छी तरह से संरक्षित हिमनद भंडार मिले हैं। ये उन कुछ क्षेत्रों में से एक हैं, जो पृथ्वी के शुरुआती दिनों से काफी हद तक बरकरार और अपरिवर्तित हैं।’
जीवाश्म के रूप में ग्लेशियर मिले
उनके मुताबिक, ‘ये भंडार जीवाश्मीकृत हिम संचय हैं, जो मूल तौर पर एक हिमनद के अवशेष हैं, क्योंकि यह क्रमिक रूप से पिघल और संकुचित हो गई हैं। यह अबतक का सबसे प्राचीन ग्लेशियर द्वारा बहाकर लाया गया मलबा है।’ ऑक्सीजन आइसोटॉप्स के विश्लेषण से वैज्ञानिकों को यह भी पता चला है कि जब ये चट्टानों के रूप में जमा हुए, तब जलवायु अत्यधिक ठंड थी। बाइंडमैन ने कहा है कि ‘तीन तरह के ऑक्सीजन आइसोटॉप्स (16O, 17O, 18O) के साथ तुलनात्मक अध्ययन से यह भी पता चला है कि ये चट्टान ऐसे समय में बनीं, जब तापमान बर्फीला था।’ उनके मुताबिक, ‘इसका मतलब बर्फ। उस जियोकेमिकल साक्ष्य को ग्लेशियर द्वारा बहाकर लाए गए मलबे के साक्ष्य के साथ जोड़ें, तो इसका अर्थ है ग्लेशियर,
पृथ्वी पर अब तक पाया गया सबसे पुराना ग्लेशियर।
वैज्ञानिकों ने जताई ये संभावनाएं शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च के आधार पर कुछ संभावनाएं सामने रखी हैं। एक तो ये कि हो सकता है कि यह क्षेत्र ध्रुव के करीब रहा हो। एक और संभावना ये है कि तब सारी पृथ्वी ‘स्नोबॉल अर्थ’ काल में रही होगी। तब कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की कम ऐट्मस्फेरिक कंसंट्रेशन की वजह ‘रिवर्स ग्रीनहाउस इफेक्ट’ हुआ, जिससे धरती का अधिकांश भाग जम गया। दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एक्सल हॉफमैन का कहना है, ‘वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा हाल के समय में कुछ मौकों पर हुआ होगा। ऐसा है तो यह इस तरह की सबसे प्रारंभिक ग्लोबल कूलिंग अवधि दर्ज की जाएगी। दोनों ही संभावनाएं वैज्ञानिक रूप से दिलचस्प हैं।’
सोने के भंडार बनाने में ग्लेशियर का रोल?
हॉफमैन के मुताबिक, ‘दुनिया में सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार हमारी ओर से खोजी गई चट्टानों के ऊपर स्थित थोड़ी नई चट्टानों में पाया जाता है। यह संभव है कि आइसहाउस से ग्रीनहाउस की परिस्थितियों में परिवर्तन की वजह से सोने के भंडार के निर्माण में मदद मिली होगी, लेकिन इसकी पुष्टि करने की जरूरत है और इसके लिए और काम करना होगा।’