Pakistan Protests: पेरिस में जिस दिन 28 जून को पुलिस के हाथों मुस्लिम नौजवान नाहल की मौत हुई और उसके विरोध में पूरे फ्रांस में हिंसक दंगे शुरु हो गये, उससे कुछ दिन पहले 23 जून को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पेरिस में थे। वो वहां एक आर्थिक सम्मेलन में हिस्सा लेने गये थे। हालांकि सम्मेलन में हिस्सा लेना तो बहाना था, इस दौरे में वो आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टलीना जॉर्जिवा से मुलाकात करना चाहते थे ताकि उन्हें आईएमएफ से तीन अरब डॉलर का लोन मिल जाए।
आईएमएफ चीफ से उनकी मुलाकात भी हुई और आईएमएफ ने कड़ी शर्तों और चेतावनी के साथ 3 अरब डॉलर का लोन देने की मंजूरी भी दे दी। इसके बाद पूरे पाकिस्तान में कर्ज मिलने की खुशी में जश्न मनाया गया। एक ऐसे देश को जहां आज चीन को छोड़कर दुनिया का कोई देश न मदद करना चाहता हो, न निवेश करना चाहता हो और जो लंबे समय से विश्व की फाइनेन्सियल एक्शन टॉस्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में बना हुआ हो, उसे तीन अरब डॉलर का कर्ज मिल जाए तो इससे बड़ी खुशी और क्या होगी?
लेकिन किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का आईएमएफ के लोन के लिए फ्रांस तक का यह सफर इतना आसान नहीं रहा है। 2012 में फ्रांस की कार्टून पत्रिका चार्ली हेब्दो ने मुस्लिमों के पैगंबर का एक कार्टून सीरीज छाप दिया था। इसके विरोध में तीन साल बाद 2015 में चार्ली हेब्दो के ऑफिस पर दो अल्जीरियाई मूल के मुस्लिमों ने हमला बोल दिया था जिसमें चार्ली हेब्दो के 12 पत्रकार मारे गये थे। चार्ली हेब्दो के कार्टून पर पूरे इस्लामिक जगत में कड़ी प्रतिक्रिया हुई तो पत्रकारों की हत्या की प्रतिक्रिया में फ्रांस ने पूरे देश में उन कार्टूनों का प्रचार किया था।
लेकिन इसी दौर में पाकिस्तान में भी बहुत कुछ घटित हो रहा था। पंजाब के गवर्नर रहे सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को ‘गाजी’ की तरह पेश किया जा रहा था। इस काम के लिए जो बरेलवी मौलाना आगे आया था उसका नाम था खादिम हुसैन रिजवी। खादिम हुसैन रिजवी हालांकि मुमताज कादरी की फांसी नहीं रोक पाया लेकिन इस मौके का उपयोग रिजवी ने पाकिस्तान में नये सिरे से मजहबी चरमपंथ पैदा करने के लिए किया। 2015 में ही उसने तहरीक ए लब्बैक (टीएलपी) नामक एक राजनीतिक दल बनाने का ऐलान किया जो भविष्य में पाकिस्तान को सच्चा इस्लामिक मुल्क बनाने के लिए काम करेगा।
2018 के जनरल इलेक्शन में टीएलपी को पंजाब में सीट तो कोई नहीं मिली लेकिन इतने वोट जरूर मिल गये कि राजनीतिक दलों को उसकी ताकत का अंदाज हो गया। इस बीच 2020 में एक बार फिर फ्रांस के चार्ली हेब्दो ने सभी कार्टून दोबारा प्रकाशित करने का ऐलान किया। जिसके कारण एक और आतंकी हमला हुआ। इस बार हमलावर पाकिस्तान का था जिसका नाम था जहीर हसन महमूद। वह चार्ली हेब्दो के पुराने हेडक्वार्टर पर पहुंच गया था यह सोचकर कि अभी भी उनका आफिस यहीं होगा और वहां चाकू से कुछ लोगों पर हमला कर दिया था। चार्ली हेब्दो के कार्टून जितना फ्रांस या दुनिया में मुद्दा बन रहे थे उससे अधिक पाकिस्तान के लिए मुसीबत। खादिम हुसैन रिजवी इनके खिलाफ मुखर होकर सड़कों पर उतर आया। उसने मांग की कि फ्रांस के राजदूत को पाकिस्तान से निकाल दिया जाए और फ्रांस के साथ सभी राजनयिक संबंध खत्म कर लिए जाएं। हालांकि इसी दौरान नवंबर 2020 में खादिम हुसैन रिजवी की संदिग्ध परिस्थितियों में ‘बुखार से मौत’ भी हो गयी लेकिन उसके बाद उसकी कमान उसके बेटे शाद हुसैन रिजवी ने अपने हाथ में ले ली।
शाद हुसैन रिजवी ने अप्रैल 2021 में अपनी पुरानी मांगों के साथ पंजाब के लाहौर सहित कई दूसरे शहरों को जाम कर दिया। पुलिस के साथ जगह जगह झड़पें हुईं। दोनों ओर से लोग मारे गये और शाद हुसैन रिजवी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद पाकिस्तान से न फ्रांस के राजदूत को निकाला गया और न ही उससे राजनयिक संबंध तोड़े गये। हां, इस दौरान पैगंबर की तौहीन करने वालों से बातचीत का सिलसिला शुरु किया गया। उस वक्त के वजीर ए आजम इमरान खान ने कहा कि वो पश्चिम को जानते हैं। वो वहां रहे हैं। वो लोग अभिव्यक्ति की आजादी को सबसे अधिक महत्व देते हैं इसलिए उनसे रिश्ता तोड़कर कुछ हासिल नहीं होगा। बल्कि बातचीत करके उन्हें समझाने से कुछ हासिल हो सकता है।
अब क्योंकि आतंकी नेटवर्क को मिलने वाले धन की निगरानी करने वाली संस्था एफएटीएफ का हेडक्वार्टर पेरिस में ही है इसलिए पाकिस्तान चाहे न चाहे उसे फ्रांस से रिश्ता रखना ही था। अगर उनको वित्तीय रूप से ये साबित करना है कि वो आतंकवादियों को धन नहीं देते तो यह सर्टिफिकेट भी फ्रांस से ही मिलेगा। लेकिन यहां तो एक अर्ध आतंकी संगठन ही मांग कर रहा था कि फ्रांस से सारे संबंध तोड़ लो। अब करीब दो साल बाद न केवल यूरोप के स्वीडन में दोबारा इस्लामिक किताब कुरान को जलाने की घटनाएं हुई हैं बल्कि इधर पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने भी शाद हुसैन रिजवी को रिहा कर दिया है। अपने अतीत के अनुभव से पाकिस्तान हुकूमत ये समझ रही है कि स्वीडन की घटना की पाकिस्तान में कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है इसलिए इस बार सरकार ने ही विरोध प्रदर्शन का ऐलान कर दिया। बुधवार को वजीर ए आजम शहबाज शरीफ ने कहा कि स्वीडन में कुरान ए करीम की जो बेहूरमती (बेइज्जती) हुई है उसके विरोध में जुम्मा (शुक्रवार) की नमाज के बाद देशभर में पीसफुल प्रोटेस्ट किये जाएं। शाहबाज शरीफ ने इस प्रोटेस्ट को यौम-ए-तकद्दुस-ए-कुरान का नाम दिया, अर्थात कुरान की पवित्रता की रखवाली का दिन।
इससे पहले गुरुवार को पाकिस्तान की नेशनल एसेम्बली का विशेष सत्र बुलाया गया ताकि स्वीडन में कुरान के साथ जो किया गया उसकी निंदा किया जाए। हालांकि नेशनल असेम्बली के इस विशेष सत्र में आधे मेम्बर भी नहीं पहुंचे लेकिन उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा। शाहबाज शरीफ इसके लिए ये सब कर भी नहीं रहे हैं। शाद हुसैन रिजवी की रिहाई के बाद उनकी पार्टी टीएलपी से शाहबाज शरीफ ने एक राजनीतिक समझौता किया है। आनेवाले आम चुनाव में शाद हुसैन की टीएलपी शरीफ खानदान की पाकिस्तान मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी।
इसलिए गुरुवार को उन्होंने यूरोपीयन कल्चर वाला थ्री पीस सूट पहनकर जोरदार इस्लामिक तकरीर करते हुए कहा कि पाकिस्तान की आवाम ऐसी बेहुरमती को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। ये दुनिया के उन देशों को चेतावनी है कि वो ऐसा करना बंद कर दे। आगे फिर से ऐसा कुछ हुआ तो फिर हमें शिकायत नहीं करेंगे। मतलब पाकिस्तान कुछ ऐसा कर देगा जिससे दुनिया दंग रह जाएगी और कहेगी कि अरे आपने ऐसा क्यों कर दिया। फिर उन्होंने ईसाइयों से भाईचारा जताते हुए ये भी कहा कि इस्लाम को अपमानित करने वाले जो काम किये जा रहे हैं वो मुसलमानों को ईसाइयों से लड़ाने की साजिश है।
असल में पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली का भाषण हो या देशभर में शुक्रवार को इसके खिलाफ एकता दिखाने का आह्वान। शाहबाज शरीफ न तो स्वीडन को कुछ सुना रहे हैं और न यूरोप को। वो तो अपनी उस जनता को बता रहे हैं जो मजहब की ऐसी मारी है कि कार्टून फ्रांस में बने या किताब स्वीडन में जले, वो पाकिस्तान को जलाना शुरु कर देते हैं। इस बार पाकिस्तान न जले इससे बचने के लिए सिर्फ ईद की नमाज पढ़कर सालभर अपना दीनी मामला चलानेवाले शाहबाज शरीफ भी एक मौलाना या मुफ्ती की तरह तकरीर करने लगे। शुक्रवार को जिस तरह से पूरे पाकिस्तान में “शांतिपूर्वक” विरोध प्रदर्शन संपन्न हो गया उससे उनकी यह रणनीति बिल्कुल सटीक भी नजर आयी। उन्हें स्वीडन के सुनने या मानने की कोई परवाह भी नहीं है। परवाह है तो इतनी ही थी कि पाकिस्तान की बेलगाम जमातें अपने ही देश को आग के हवाले न कर दें।
हालांकि टीएलपी का शाद हुसैन रिजवी इतने से खुश नहीं हुआ। उसने एक अलग मांग रखी कि अगर स्वीडन के राजदूत को बुलाकर तीनों सेनाओं के चीफ के सामने बिठाया जाता। उससे ये कहा जाता कि हमसे वादा करो कि भविष्य में कुरान के साथ तुम्हारे देश में बेहुरमति नहीं होगी, वरना हम अभी तुम्हारे ऊपर हमला करेंगे। अगर ऐसा कर दिया जाता तो एक मिनट में समस्या का समाधान हो जाता। खैर, पहले से आर्थिक दुष्चक्र में फंसे पाकिस्तान को ऐसे आक्रामक रुख की भी कीमत चुकानी पड़ेगी। यूरोप के लोग वैसे नहीं सोचते जैसे नकली अरब बन चुके पाकिस्तान के लोग सोचते हैं। सऊदी अरब को भी ये सब अच्छा नहीं लगता कि पाकिस्तान उनको पीछे धकेलकर अपने आप को असली अरब तथा पैगंबर और कुरान का सच्चा रखवाला साबित करता फिरे। इसलिए जब से पाकिस्तान ने यह राह पकड़ी है उसके हिस्से में सिर्फ कुर्बानी ही आयी है। यूरोपीय देश ऐसी बातों को ‘आतंकी गतिविधियों का समर्थन’ बताकर हाथ खींच लेते हैं तो अरब के देश पाकिस्तान को मुस्लिम उम्माह का नया चौधरी बनता देख अपने आप को अलग कर लेते हैं। हर तरफ से इसका नुकसान अंतत: पाकिस्तान को ही होता है।
लेकिन सच्चाई तो यही है कि पाकिस्तान दुनिया का पहला और आखिरी ऐसा देश है जो इस्लाम के नाम पर बना। वह ये कुर्बानी नहीं देगा तो भला कौन देगा? पाकिस्तान के महान सोशलिस्ट इस्लामिक लीडर जुल्फिकार अली भुट्टो तो कहकर जा ही चुके हैं कि पाकिस्तान घास की रोटी खा लेगा लेकिन इस्लामिक बम (न्युक्लियर बम) जरूर बनायेगा। ऐसी ही इस्लामिक कुर्बानियों की बदौलत तो आज पाकिस्तान इस दशा को पहुंचा है कि कोई कर्ज देने को भी तैयार नहीं है। ऐसे में पूरे पंजाब में आई बाढ़ और तबाही के बीच पाकिस्तानी सरकार और आवाम को स्वीडन में लगाई गयी आग परेशान कर रही है तो समझने में किसे मुश्किल होगी कि पाकिस्तान इस्लाम के लिए कुर्बान हो रहा है।