World Population Day के दिन ये जानना बेहद दिलचस्प है कि वैश्विक जनसंख्या में महिलाओं और लड़कियों का शेयर 49.7% हैं। हालांकि, आधी आबादी का हाशिए पर होना चिंताजनक है। UN की रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या नीतियों में उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार महिलाओं और लड़कियों को अक्सर जनसांख्यिकी पर चर्चा के दौरान नजरअंदाज कर दिया जाता है। ऐसे में 2023 में वर्ल्ड पॉपुलेशन डे के मौके पर लैंगिक समानता की ताकत को उजागर करने का प्रयास किया जाएगा। संभावनाओं के असीमिति आसमां पर महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ को भी अहमियत दी जाएगी।
दरअसल, लगातार बढ़ती आबादी के कारण महिलाओं और लड़कियों को स्कूल, कार्यबल और नेतृत्व की भूमिका से वंचित होना पड़ता है। हिंसा, हानिकारक प्रथाओं और रोकी जा सकने वाली मातृ मृत्यु कितना संवेदनशील मुद्दा है इसका अंदाजा इसी से होता है कि हर साल गर्भावस्था या प्रसव के कारण हर दो मिनट में एक महिला की मृत्यु हो जाती है।
दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश मेघालय के मासिनराम में होती है, ये है इसकी वजह वर्ल्ड पॉपुलेशन डे के मौके पर हमें ऐसा संसार बनाने पर फोकस का संकल्प लेना चाहिए, जहां लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने का मौका मिले। महिलाओं और लड़कियों की रचनात्मकता और सरलता जनसांख्यिकीय और अन्य चुनौतियों से निपटने में मौलिक सहयोगी हो सकते हैं। जब महिलाओं और लड़कियों को समाज सशक्त बनाता है, तो वे और उनके परिवार फलते-फूलते हैं। यूएनएफपीए 2023 स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट में इसका जिक्र है। विश्व की जनसंख्या को 1 अरब तक पहुंचने में सैकड़ों हजारों वर्ष लगे। इसके बाद लगभग 200 वर्षों में, यह सात गुना बढ़ गई।
2011 में, वैश्विक जनसंख्या 7 बिलियन के आंकड़े तक पहुंची। 2021 में वर्ल्ड पॉपुलेशन लगभग 7.9 बिलियन हो गई। 2030 में आबादी बढ़कर लगभग 8.5 बिलियन और 2050 में 9.7 बिलियन होने का अनुमान है। यही दर जारी रही तो 2100 में वर्ल्ड पॉपुलेशन 10.9 बिलियन होने की उम्मीद है। जनसंख्या में नाटकीय वृद्धि बड़े पैमाने पर प्रजनन आयु तक जीवित रहने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के कारण हुई है। प्रजनन दर में बड़े बदलाव, शहरीकरण में वृद्धि और प्रवासन में तेजी भी बढ़ती जनसंख्या के प्रमुख कारण हैं। आने वाली पीढ़ियों पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। हाल के दिनों में प्रजनन दर और जीवन प्रत्याशा में भारी बदलाव देखा गया है।
1970 के दशक की शुरुआत में, प्रत्येक महिला के औसतन 4.5 बच्चे थे; 2015 तक, दुनिया की कुल प्रजनन क्षमता प्रति महिला 2.5 बच्चों से कम हो गई थी। इस बीच, औसत वैश्विक जीवनकाल 1990 के दशक की शुरुआत में 64.6 वर्ष से बढ़कर 2019 में 72.6 वर्ष हो गया है। दुनिया में उच्च स्तर का शहरीकरण और तेज प्रवासन का आलम ये है कि करीब 16 साल पहले 2007 में पहली बार ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक लोगों के रहने की खबर सामने आई। अब हालात ऐसे हैं कि 2050 तक दुनिया की लगभग 66 प्रतिशत आबादी शहरों में ही रहेगी। आबादी से जुड़ी इन बातों के दूरगामी प्रभाव हैं।
पॉपुलेशन आर्थिक विकास, रोजगार, आय वितरण, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा को प्रभावित करता है। स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और बिजली/ ऊर्जा सबको मिले, इसके लिए जरूरी है 2023 के विश्व आबादी दिवस के दिन संकल्प लेने की। इंसान की जरूरतों को अधिक स्थायी और प्रभावी तरीके से पूरी हों, इसके लिए, नीति निर्माताओं को समझना होगा कि धरती पर कितने लोग रह रहे हैं। आबादी देशवार कितनी है? लोगों की उम्र कितनी है? आने वाले साल में कितने और लोग आएंगे? इन सवालों का प्रभावी उत्तर खोजना ही पड़ेगा। शायद इसी संतुलन की तरफ संकेत करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, धरती पर जरूरतों को पूरा करने के तमाम संसाधन हैं, लेकिन इंसान का लालच या ‘और-और की हवस’ कभी पूरी नहीं हो सकती।